क्षमा करें ............ बहुत समय पश्चात आप लोगों के समक्ष उपस्थित हो पाया हूँ । क्या कहूँ कार्यालय में इतनी व्यस्तता थी कि नए लेख के लिए समय ही नहीं मिल पा रहा था ,आप लोगों के समक्ष उपस्थित होने में एक लम्बा समय अंतराल रहा, मै क्षमाप्राथी हूँ।आज मै अपने इस नए लेख में आप लोगों के समक्ष "आज़ाद" जी की विजय गाथा प्रस्तुत करने जा रहा हूँ तथा उम्मीद करता हूँ की यह लेखा आप लोगों को अवश्य पसंद आये !
पंडित चन्द्रशेखर आजाद का जन्म उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के बदरका में 23 जुलाई 1906 को हुआ था। इनके पिता पं० सीताराम तिवारी जी थे और मां का नाम जगरानी देवी था। आजाद उग्र और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल और सरदार भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के साथियों में से थे।
आजाद का शुरुआती जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भावरा गांव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी ।
एक बार आजाद के पिता पं० सीताराम तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहां से नमक मांग लायीं इस पर तिवारी जी ने उन्हें बहुत डांटा और इसकी सामूहिक सजा स्वरूप चार दिन तक परिवार में सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण बालक चन्द्रशेखर ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे।
1920-21 के वर्षों में वे गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए, जहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, 'वन्दे मातरम्' और 'महात्मा गाँधी की जय' का स्वर बुलन्द किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए।
1922 में गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था, और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया और फरार हो गये।
इसके बाद 1927 में 'बिस्मिल' के साथ 4 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया और भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का वध करके लिया और दिल्ली पहुंच कर असेंबली बम कांड को अंजाम दिया।
वे अपने माउजर को बमतुल बुखारा कहते थे। चंद्रशेखर आजाद लेखक, कवि भी थे। इनका एक शेर जो दिल को दहलाने के लिए काफी है-
"अभी शमशीर कातिल ने, न ली थी अपने हाथों में। हजारों सिर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं॥"
उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में उन्होंने स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी।
जय हिंद जय भारत